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Paddy Farming

चावल की कम समय और कम जल खपत में तैयार होने वाली किस्में

चावल की कम समय और कम जल खपत में तैयार होने वाली किस्में

चावल उत्पादन के मामले में भारत दूसरे स्थान पर आता है। धान की फसल के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती हैं इसके पौधों को जीवनकाल में औसतन 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 37 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती हैं। 

धान की खेती के लिए मटियार एवम दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती हैं। प्रदेश में धान की खेती असिंचित व् सिंचित दशाओं में सीधी बुवाई व रोपाई द्वारा की जाती हैं।

बतादें, कि निरंतर घटते भू-जल स्त्रोत की वजह से आज पानी का संकट होता जा रहा है। गर्मियों के दिनों में तो पेयजल संकट और ज्यादा गहरा हो जाता है। धान की खेती करने वाले कृषकों के समक्ष सिंचाई की चुनौतियां आती हैं। 

धान की खेती में सर्वाधिक पानी की जरूरत पड़ती है। एक अनुमान के मुताबिक, एक किलोग्राम धान उत्पन्न करने में लगभग 2500 से 3000 लीटर जल की आवश्यकता होती है। 

वर्तमान में हमें कम समय और कम पानी में तैयार होने वाले ऐसे चावल की किस्मों की आवश्यकता है, जिससे कि उनकी सिंचाई में पानी की खपत को कम करके पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सके और कम पानी में उत्तम पैदावार हांसिल की जा सके। 

इस बात को मद्देनजर रखते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीयू) के विशेषज्ञों ने चावल की कम व मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों की सिफारिश की है। इसमें चावल की पीआर 126 और पीआर 131 के अच्छे परिणाम मिले हैं। 

यह दोनों ही प्रजातियां कम पानी व समयावधि में तैयार होने वाली चावल की प्रजातियां हैं। आगे आपको बताएंगे कि कृषक इन किस्मों की बुवाई करके कम खर्चा में चावल की अच्छी-खासी उपज प्राप्त कर सकते हैं।

चावल की पीआर 126 किस्म

धान (चावल) की पीआर 126 किस्म को पंजाब कृषि विभाग के द्वारा विकसित किया गया है, जो कम समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की ऊंचाई 102 सेमी तक होती है। 

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यह किस्म 123 से 125 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। इस किस्म को कम जल की जरूरत होती है। इतना ही नहीं यह किस्म सात अलग-अलग बैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनकों के लिए प्रतिरोधी प्रजाति है। इसकी उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 31 क्विंटल की उपज हांसिल की जा सकती है।

चावल की पीआर 131 किस्म की क्या खूबी है ?

चावल की पीआर 131 किस्म की ऊंचाई 111 सेमी है। यह किस्म रोपाई के लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह वैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनक के समस्त 10 रोगों के लिए प्रतिरोधी प्रजाति है। इसके उत्पादन की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ लगभग 31 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है।

बतादें, कि इन किस्मों के अतिरिक्त भी धान की कम पानी में उगने वाली बाकी किस्में भी हैं, जिनकी खेती करके लघु या मध्यम अवधि में धान की शानदार उपज हांसिल की जा सकती है। इन किस्मों में पूसा सुगंध- 5, पूसा बासमती- 1509, पूसा बासमती-1121 व पूसा-1612 आदि शम्मिलित हैं।

चावल की धान पूसा सुगंध-5 किस्म 

धान की पूसा सुगंध-5 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पूसा दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह चावल की संकर प्रजाति है। इसके दाने पतले, सुगंधित और लगभग 7 से 8 मिमी लंबे होते हैं। 

इसके दाने की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है और उपज क्षमता भी काफी अच्छी होती है। यह किस्म 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

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इस किस्म से औसत पैदावार लगभग 5.5 से 6 टन प्रति हैक्टेयर अर्जित की जा सकती है। पूसा सुगंध की खेती भारत में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में विशेष तोर पर की जाती है।

चावल की पूसा बासमती- 1509 किस्म 

धान (चावल) की पूसा बासमती 1509 किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई कम समयावधि में तैयार होने वाली प्रजाति है। यह किस्म 120 दिन की समयावधि में तैयार हो जाती है।

इसकी औसत उपज की बात की जाए तो इस प्रजाति से लगभग 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। पूसा बासमती- 1509 किस्म के दाने लंबे व पतले हाते हैं, जिनकी लंबाई लगभग 8.19 मिमी होती है। 

यह चावल की अत्यंत सुगंधित किस्म है। इस किस्म में चार सिंचाई के जल की रक्षा में सहयोग मिल सकता है। यह किस्म धान की 1121 किस्म की तुलना में कम जल खपत में तैयार हो जाती है, जिससे पानी की 33% प्रतिशत बचत होती है। 

यह किस्म सिंचित अवस्था में धान-गेहूं फसल प्रणाली के लिए अनुकूल बताई गई है। इसके पौधे आधे बौने होते हैं और गिरते नहीं है। 

बतादें, कि इसके साथ ही फसल पकने पर दाने झड़ते नहीं है। यह किस्म पूर्ण झुलसा व भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। 

चावल की पूसा बासमती-1121 किस्म

धान की पूसा बासमती-1121 किस्म को सिंचित इलाकों में उगाया जा सकता है। यह किस्म 140 से 145 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। 

यह धान की अगेती प्रजाति है, इसका दाना लंबा व पतला और खाने में अत्यंत स्वाद से परिपूर्ण होता है। धान की इस प्रजाति से 40 से 45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन हांसिल किया जा सकता है।

चावल की पूसा-1612 किस्म

धान की पूसा-1612 किस्म को 2013 में विमोचित किया गया था। यह धान की सुगंध-5 किस्म का विकसित स्वरूप है। यह किस्म 120 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

यह सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती है। यह किस्म ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी किस्म मानी जाती है। बतादें, कि इस किस्म से तकरीबन 55 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

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पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।

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स्यालू में धान (dhaan/Paddy)

स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी। 

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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं। रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है। 

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धान रोपण युक्ति

तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है। 

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)

गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है। जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये भी पढ़ें: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।

उड़द, मूंग में सावधानी

बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है। 

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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए। उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।

भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा

बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।


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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।

ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच

देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।


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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।  

कैसे डालें धान की नर्सरी

कैसे डालें धान की नर्सरी

किसी भी फसल की नर्सरी डालना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है क्योंकि अनेक तरह के रोग संक्रमण नर्सरी से शुरू होकर आखरी फसल पकने तक परेशान करते हैं। इनमें मुख्य रूप से जीवाणु और विषाणु जनित रोग प्रमुख हैं। 

धान की नर्सरी (paddy nursery)

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए महीन धान 30 किलोग्राम,मध्यम धान 35 किलोग्राम और मोटे धान का 40 किलोग्राम बीज को तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर की नर्सरी से लगभग 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई हो जाती है। 

धान की नर्सरी डालने से पहले पौधों वाली क्यारी को खेत से 1 से 2 इंची ऊंचा उठा लें ताकि गर्मी के समय में यदि क्यारी में पानी ज्यादा लग जाए तो उसे निकाला जा सके।

क्यारी उपचार


धान की नर्सरी डालने से पूर्व एक कुंतल सड़े हुए गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राइकोडरमा मिला लें और उसे पेड़ की छांव में पानी के छींटे मार कर रखते हैं। 

7 दिन तक पानी के छींटे मारते हुए स्थान को पलटते रहें। इसके बाद धान की नर्सरी जिस क्यारी में डालनी है उसमें इसे मिला दें। ऐसा करने से जमीन में मौजूद सभी हानिकारक फफूंदियां नष्ट हो जाएंगी। 

उर्वरक प्रबंधन

एक हेक्टेयर नर्सरी डालने के लिए खेत में 100 किलोग्राम नत्रजन एवं 50 किलोग्राम फास्फोरस का प्रयोग करें।ट्राइकोडरमा का एक छिड़काव नर्सरी लगने के 10 दिन के अंदर पर कर देना चाहिए।

मौत के 10 से 15 दिन का होने पर एक सुरक्षात्मक छिड़काव खैरा सहित विभिन्न रोगों से सुरक्षा के लिए कर देना चाहिए। पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया, या ढाई किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव बुवाई के 10 दिन बाद दूसरा 20 दिन बाद करना चाहिए। 

सफेदा रोग का नियंत्रण करने के लिए 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का 20 किलो यूरिया के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। झोंका रोग की रोकथाम के लिए 500 ग्राम कार्बन डाई, 50% डब्ल्यूपी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 

भूरा धब्बा रोग से बचाव के लिए दो किलोग्राम जिंक मैग्नीस कार्बोमेट का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। नर्सरी में लगने वाले कीड़ों से पौधों को बचाने के लिए 1 लीटर फेनीट्रोथियान 50 ईसी, 1. 25 लीटर क्नायूनालफास 25 ईसी या 1.5 लीटर क्लोरो पायरी फास 20 ईसी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें। 

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समय-समय पर पद की क्यारी में पानी लगाते रहे और इस बात का जरूर ध्यान रखें की पानी शाम को लगाएं। सुबह तक क्यारी पानी को पी जाए इतना ही पानी लगाएं। ज्यादा पानी लगाने और पानी के क्यारी में ठहर जाने से पौध मर सकती है।

बीज का भिगोना

धान के बीज को अंकुरण के लिए भिगोने से पूर्व 100 किलो पानी में 2 किलो नमक डालकर बीज को उसमें डालें। इससे संक्रमित थोथा और खराब बीज ऊपर तैर आएगा। 

खराब बीज को फेंक दें। अच्छे बीज को नमक के घोल से निकाल कर तीन चार बार साफ पानी में धो लें ताकि नमक का कोई भी अंश बीज पर ना रहे।

Kharif Tips: बारिश में घर-बागान-खेत में उगाएं ये फसल-साग-सब्जी, यूं करें बचत व आय में बढ़ोतरी

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इसे प्रकृति का मानसून ऑफर समझिये और अपने घर, बगिया, खेत में लगाएं मानसून की वो फसल साग-सब्जी, जिनसे न केवल घरेलू खर्च में हो कटौती, बल्कि खेत में लगाने से सुनिश्चित हो सके आय में बढ़ोतरी। लेकिन यह जान लीजिये, ऐसा सिर्फ सही समय पर सही निर्णय, चुनाव और कुशल मेहनत से संभव है। घर की रसोई, छत की बात करें, इससे पहले जान लेते हैं मानसून की फसल यानी खरीफ क्रॉप में मुख्य फसलों के बारे में। खरीफ की यदि कोई मुख्य फसल है तो वह है धान

धान के उन्नत परंपरागत बीज मुफ्त प्रदान करने वाले केंद्र के बारे में जानिये

(Paddy Farming: किसानों को इस फार्म से मुफ्त में मिलते हैं पांरपरिक धान के दुर्लभ बीज) जबलपुर निवासी, अनुभवी एवं प्रगतिशील युवा किसान ऋषिकेश मिश्रा बताते हैं कि, बारिश के सीजन में धान की रोपाई के लिए अनुकूल समय, बीज, रोपण के तरीके के साथ ही सिंचन के विकल्पों का होना जरूरी है।

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धान (dhaan) के लिए जरूरी टिप्स (Tips for Paddy)

खरीफ क्रॉप टिप्स (Kharif Crop Tips) की बात करें, तो वे बताते हैं कि शुरुआत में ही सारी जानकारी जुटा लें, जैसे खेत में ट्रैक्टर, नलकूप आदि के साथ ही कटाई आदि के लिए पूर्व से मजदूरों को जुटाना, लाभ हासिल करने का बेहतर तरीका है। समय पर डीएपी, यूरिया, सुपर फास्फेट, जिंक, पोटास आदि का प्रयोग लाभ कारी है। धान की प्रजाति की किस्म का चुनाव भी बहुत सावधानी से करना चाहिए।

ये भी पढ़ें: स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी ऋषिकेश बताते हैं कि, एक एकड़ के खेत में बोवनी से लेकर कटाई की मजदूरी, बिजली, पानी, ट्रैक्टर, डीजल आदि पर आने वाले खर्चों को मिलाकर, जुलाई से नवंबर तक के 4 से 5 महीनों के लगभग 23 से 24 हजार रुपये के कृषि निवेश से, औसतन 22 क्विंटल धान पैदा हो सकता है। मंडी में इसका समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल था। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रति एकड़ पर 20 से 21 हजार रुपये की कमाई हो सकती है। खरीफ सीजन की मेन क्रॉप धान की रोपाई वैसे तो हर हाल में जुलाई में पूर्ण कर लेना चाहिए, लेकिन लेट मानसून होने पर इसके लिए देरी भी की जा सकती है बशर्ते जरूरत पड़ने पर सिंचाई का पर्याप्त प्रबंध हो।

ये भी पढ़ें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation) कृषि के जानकारों की राय में, धान की खेती (Paddy Farming) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा को रोपाई के 58 दिन बाद प्रयोग करना चाहिए।

खरीफ कटाई का वक्त

जून-जुलाई में बोने के बाद, अक्टूबर के आसपास काटी जाने वाली फसलें खरीफ सीजन की फसलें कही जाती हैं। जिनको बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता के अलावा परिपक़्व होने, यानी पकते समय शुष्क वातावरण की जरूरत होती है।

घर और खेत के लिए सब्जियों के विकल्प

खरीफ की प्रमुख सब्जियों की बात करें तो भिंडी, टिंडा, तोरई/गिलकी, करेला, खीरा, लौकी, कद्दू, ग्वार फली, चौला फली के साथ ही घीया इसमें शामिल हैं। इन बेलदार सब्जियों के पौधे घर की रसोई, दीवार से लेकर छत पर लगाकर महंगी सब्जियां खरीदने के खर्च में कटौती करने के साथ ही सेहत का ख्याल रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा वहीं किसान खेत के छोटे हिस्से में भिंडी, तोरई, कद्दू, करेला, खीरा, लौकी, के साथ ही फलीदार सब्जियों जैसे ग्वार फली लगाकर एक से सवा माह की इन सब्जियों से बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते हैं।

साग-सब्जी टिप्स

घर में पानी की बोतल, छोटे मिट्टी, प्लास्टिक, धातु के बर्तनों में मिट्टी के जरिये जहां इन सब्जियों की बेलों को आकार दिया जा सकता है, वहीं खेत में मिश्रित खेती के तरीके से थोड़े, थोड़े अंतर पर रसोई के लिए अनिवार्य धनिया, अदरक जैसी जरूरी चीजें भी उगा सकते हैं। घरेलू उपयोग का धनिया तो इन दिनों घरों में भी लगाना एक तरह से नया ट्रेंड बनता जा रहा है।
मेडागास्कर की इस पद्धति का इस्तेमाल कर उगाएं धान, उपज होगी दोगुनी

मेडागास्कर की इस पद्धति का इस्तेमाल कर उगाएं धान, उपज होगी दोगुनी

बदलते वक्त के साथ भारतीय वैज्ञानिकों के अलावा विश्व के कई वैज्ञानिकों की मदद से खेती की नई तकनीकों का भी विकास होता हुआ दिखाई दिया है। धान उत्पादन की कई नई तकनीक आज के समय युवा किसानों को आकर्षित कर रही है, इन्हीं तकनीकों में एक सबसे लोकप्रिय तकनीक है- जिसे मेडागास्कर पद्धति (Madagascar technique) के नाम से जाना जाता है। भारत में कुछ किसान इसे 'श्री विधि' (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जानते है। वैसे तो यह पद्धति 1980 के दशक से लगातार इस्तेमाल में लाई जा रही है।

धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि

इस पद्धति का नाम मेडागास्कर द्वीप पर पहली बार परीक्षण करने की वजह से मेडागास्कर पद्धति रखा गया है। भारत में लगभग साल 2000 के बाद प्रचलन में आई यह पद्धति, दक्षिण के राज्यों जैसे कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय रही है। यह बात तो हम जानते है कि नई तकनीकों के प्रयोग के साथ पानी के कम इस्तेमाल को एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में देखा जाता है। श्री पद्धति में भी धान उत्पादन के दौरान पानी का बहुत ही कम इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो हम जानते हैं, कि पारंपरिक खेती में धान के पौधों को पानी से भरे हुए खेतों में उगाया जाता है, लेकिन इस तकनीक में पौधों की जड़ों में बस थोड़ी सी नमी की मात्रा बराबर बनाकर रखनी होगी और पारंपरिक खेती की विधि की तुलना में इस विधि से दो से ढाई गुना तक अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है, कि इसमें धान के पौधों को सावधानीपूर्वक और बिना कीचड़ वाली परिस्थिति में रोपा जाता है, जैसे कि परंपरागत धान की खेती में पौधों को 21 दिन के बाद लगाया जाता है, जबकि इसमें जल्दी उत्पादन को ध्यान रखते हुए उन्हें 10 दिन के बीच में ही बोया जाता है।


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पौधों के बीच में रहने वाले जगह का भी पर्याप्त ध्यान रखना होगा।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि जब तक आपके धान से बाली बाहर नहीं निकल आती है, तब तक खेत को थोड़ा बहुत नमी के साथ सूखा रखा जाता है और उसमें पानी बिल्कुल भी नहीं भरा जाता है। जब भी धान के पौधे की कटाई का समय आता है उससे लगभग 25 दिन पहले खेत में पानी पूरी तरीके से निकाल दिया जाना चाहिए, इसीलिए इस विधि का इस्तेमाल करने से पहले आपको अपने खेत की पानी निकासी की व्यवस्था की पर्याप्त जांच कर लेनी होगी।

मेडागास्कर पद्धति में खाद अनुपात व नर्सरी की तैयारी

मेडागास्कर पद्धति में जैविक खाद का इस्तेमाल सर्वाधिक किया जाता है।


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धान की रोपाई होने के बाद लगभग 10 दिन से ही खरपतवार निकालने की शुरुआत की जानी चाहिए और कम रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल की वजह से आपको कम से कम 2 बार निराई करनी होगी। इस पद्धति के तहत, खरीफ मौसम की फसल के लिए जून महीने के शुरुआत में बीज की बुवाई करनी चाहिए और उसके बाद निरंतर समय अंतराल पर ध्यान से निराई का कार्य करना चाहिए। इस विधि की एक और खास बात यह है कि इसमें नर्सरी तैयार करने के लिए 300 से 400 वर्ग फुट का क्षेत्र ही काफी पर्याप्त माना जाता है। नर्सरी में छोटी क्यारियां बनाई जाती है और इनके एक कोने पर नाली लगाई जाती है, जिससे कि पानी की निकासी सुचारू रूप से हो सके। यदि आप खुद से नर्सरी तैयार करने में सक्षम नहीं हैं, तो इस विधि से तैयार होने वाले धान के लिए बाजार से भी बीज खरीदा जा सकता है, इसके लिए आपको प्रति हेक्टेयर में लगभग 5 किलोग्राम तक बीज डालने की आवश्यकता होगी। जब आपके पास बीज आ जाएंगे तो उन्हें नर्सरी में रोप कर पर्याप्त प्रबंधन, जैसे कि नर्सरी पैड का उचित प्रबंधन और उत्तम खाद की परत का इस्तेमाल, साथ ही ध्यान पूर्वक दिया गया पानी जैसी बातों का ध्यान रखकर रोपण किया जा सकता है। इस विधि के लिए किसान भाइयों को परंपरागत खेती की तुलना में कुछ ज्यादा अलग करने की जरूरत नहीं है, परन्तु खेत के समतलीकरण पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। आपको 2 से 3 मीटर की दूरी पर क्यारियां बनानी होगी, इसके बाद बिना पानी भरे हुए खेत में नमी को बरकरार रखते हुए 1 घंटे के अंदर की पहले से तैयार हुई नर्सरी का रोपण शुरू कर दें। एक जगह पर एक बार में दो से तीन पौधे ही लगाने चाहिए, सभी किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि यदि आप अपने खेतों में धान की रोपाई जुलाई के पहले सप्ताह में करते हैं, तो 25 से 30% तक अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार तैयार हुए धान की पौध में उचित मात्रा में पोषक तत्व और उर्वरकों की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए जैविक खाद, जैसे कि गोबर खाद, बायोगैस खाद आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो एजोटोबेक्टर कल्चर (Azotobacter culture) की सहायता ले सकते हैं।


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जैविक खाद की दर को 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर से बनाकर रखें और अपने खेत की मिट्टी में पोषक तत्वों की जांच करवाने के बाद नाइट्रोजन, सल्फर और पोटाश को पर्याप्त मात्रा में मिलाकर खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। किसान भाई ध्यान रखें कि यदि आपने खेत में पानी भरने दिया तो वहां पर काफी ज्यादचारा और कचरा हो जाएगा। इस चारे को काटने के लिए अलग से मेहनत और मजदूरी के पैसे भी आपके बजट को बढ़ा सकते हैं, इसलिए आप कोनोवीडर (CONO WEEDER)का इस्तेमाल कर खरपतवार को निकाल सकते हैं और वक्त रहते हुए अपने खेत में मनचाही उपज प्राप्त कर सकते है। आशा करते हैं कि, श्री विधि के तहत धान उत्पादन की खेती हमारे किसान भाइयों को भविष्य में अच्छा मुनाफा कमा कर दे पाएगी और ऊपर बताई गई जानकारी का इस्तेमाल कर आप भी अपने छोटे से खेत में अच्छी पैदावार कर पाएंगे।
इस राज्य सरकार ने की घोषणा, अब धान की खेती करने वालों को मिलेंगे 30 हजार रुपये

इस राज्य सरकार ने की घोषणा, अब धान की खेती करने वालों को मिलेंगे 30 हजार रुपये

सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने को लेकर प्रयत्नशील रहती है। इसको लेकर तामाम राज्य सरकारें अपने किसानों को अलग-अलग तरह की सहूलियतें मुहैया करवाती रहती हैं। फसल बर्बाद होने के एवज में राज्य सरकारें अपने किसानों को करोड़ों रुपये की आर्थिक सहायता मुहैया करवाती हैं। साथ ही, डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के माध्यम से किसानों को सीधे रुपये देती हैं, ताकि किसान भाई अपने पैरों पर खड़े रह पाएं। इसी को आगे बढ़ाते हुए अब महाराष्ट्र की सरकार ने किसानों की मदद करने का निर्णय लिया है। महाराष्ट्र की सरकार ने ऐलान किया है, कि राज्य में धान की खेती करने वाले किसानों को अब बोनस दिया जाएगा। अब महाराष्ट्र सरकार धान की खेती पर 15 हजार रुपये प्रति हैक्टेयर किसानों को बोनस देगी। यह आर्थिक रूप से पिछड़े किसानों के लिए बेहद अच्छा फैसला हो सकता है। इस खबर के बाद राज्य के किसानों के बीच खुशी की लहर है। किसानों का कहना है, कि बोनस के पैसों से किसान समय अपनी खेती के लिए बीज, उर्वरक और कीटनाशक खरीद सकेगा। जिससे किसानों को अपना उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।

राज्य के किसानों को 30 हजार रुपये का बोनस देगी महाराष्ट्र सरकार

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में ऐलान किया है, कि राज्य के धान किसानों को अधिकतम 2 हेक्टेयर तक के धान उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 15 हजार रुपये का अनुदान दिया जाएगा। इस हिसाब से 2 हेक्टेयर खेत में धान उत्पादन करने वाले किसान के लिए अधिकतम बोनस 30 हजार रुपये होगा। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा, कि सरकार के इस निर्णय से राज्य के 5 लाख धान किसानों को फायदा होगा। इस तरह की घोषणाएं किसानों को काफी राहत प्रदान करने वाली हैं। क्योंकि इस साल महाराष्ट्र में भारी बरसात की वजह से धान की काफी फसल नष्ट हो गई थी। जिसके बाद धान किसानों के सामने आजीविका का बड़ा संकट उत्पन्न हो गया था। इस संकट से परेशान होकर बहुत से किसानों ने राज्य में आत्महत्या कर ली थी। लेकिन किसानों के हित में सरकार की इस घोषणा से किसान अब निश्चिंत होकर धान की खेती कर सकेंगे। इसके पहले महाराष्ट्र की सरकार ने अपने किसानों को अन्य तरह से सहायता मुहैया कारवाई है। पिछले महीने ही बीमा कंपनियों की तरफ से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत 16 लाख 86 हजार 786 किसानों की मदद की गई थी। इस दौरान बीमा कंपनियों ने इन किसानों को 6255 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया है। इसके साथ ही कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा था, कि शेष नुकसान प्रभावित किसानों को 1644 करोड़ रुपये की राशि जल्द ही सीधे उनके खातों में भेजी जाएगी। सरकार ने कहा था कि जिन भी किसानों की फसलें खराब हुईं हैं, उन सभी किसानों को सहायता राशि मुहैया कारवाई जाएगी। राज्य में कोई भी किसान इससे वंचित नहीं रहेगा। इसके साथ ही, कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने बीमा कंपनियों के अधिकारियों से खरीफ की फसल की पूरी जानकारी ली थी। उन्होंने बीमा कंपनियों के अधिकारियों से प्राप्त सूचनाओं, पूर्ण अधिसूचनाओं की संख्या, लंबित अधिसूचनाओं की संख्या व निर्धारित मुआवजा के संबंध में बातचीत की थी।
इस राज्य ने लगभग हासिल किया अपना धान खरीदी का लक्ष्य

इस राज्य ने लगभग हासिल किया अपना धान खरीदी का लक्ष्य

छत्तीसगढ़ राज्य ने धान खरीदी का लक्ष्य तकरीबन सापेक्ष कर लिया गया है। राज्य सरकार द्वारा कृषकों के खातों में धनराशि हस्तांतरित करदी है। अपैक्स बैंक किसानों के खाते में 22 हजार करोड़ रुपये की धनराशि भेजेगा। भारत के ज्यादातर राज्यों में धान खरीद पूर्ण कर ली गई है। परंतु, उत्तर प्रदेश, बिहार में धान खरीदी की रफ्तार काफी धीमी दिखाई दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए अधिकारियों को निर्देशित किया है, कि किसी भी स्तर से कृषकों को दिक्कत परेशानी न होने पाए। साथ ही, राज्य सरकार के स्तर से किसानों के खाते में एमएसपी (MSP) पर धान खरीदी की धनराशि भी उनके खातों में निर्धारित समय पर हस्तांतरित की जा रही है। किसानों को अपनी धनराशि पाने हेतु इधर से उधर न भटकना पड़े। किसानों के आधार लिंक्ड खातों में ही पैसा हस्तांतरित किया जा रहा है।

अपैक्स के जरिए किसानों के खातों में 22 हजार करोड़ रुपये भेजे जाएंगे

छत्तीसगढ़ राज्य में 1 नवंबर से धान खरीदी आरंभ कर दी गई थी। 31 जनवरी तक धान खरीदी का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। 31 जनवरी निकल गई है। राज्य सरकार द्वारा तकरीबन धान खरीद पूर्ण हो गई है। साथ ही, किसानों के समक्ष चुनौती रहती है, कि धान खरीद के उपरांत में धन प्राप्त हो पा रहा है, कि नहीं हो रहा है। धान खरीद की धनराशि का भुगतान करने हेतु मार्क फेड द्वारा अपैक्स बैंक के लिए 22 हजार करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। जिन किसानों को धान खरीद की भुगतान धनराशि अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। इस धनराशि को उन्ही किसानों के खाते में हस्तांतरित किया जाएगा।
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धान खरीदी लगभग लक्ष्य के समीप पहुँच गई है

छत्तीसगढ़ सरकार ने धान खरीद का लक्ष्य 31 जनवरी तक 110 लाख मीट्रिक टन निर्धारित किया था। प्रदेश में 30 जनवरी तक धान खरीद का जो रिकॉर्ड देखने को मिला है। उसी आधार पर राज्य में धान खरीदी के विगत समस्त रिकॉर्ड को तोड़ कर प्रदेश में 30 जनवरी तक 107 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी की जा चुकी है। आपको बतादें कि यह धान खरीदी प्रदेश के 23.39 लाख किसानों से की गई है।

धान का 96 लाख मीट्रिक टन उठान का डीओ जारी

प्रदेश सरकार धान खरीद लेती हैं। परंतु, खपत एवं उसके सुरक्षित भंडारण हेतु उसका उठान भी करना अति आवश्यक रहता है। इसी बीच कस्टम मिलिंग हेतु धान का उठान आरंभ किया जा चुका है। 107 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी में से तकरीबन 96 लाख मीट्रिक टन धान उठान हेतु डीओ जारी कर दिया गया है। इसके सापेक्ष मिलर्स द्वारा 89 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा धान का उठान कर लिया गया है। साथ ही, प्रदेश में इस वर्ष धान खरीदी हेतु 24.98 लाख किसानों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। जिसके अंतर्गत 2.32 लाख नवीन कृषक भाई शम्मिलित रहे हैं। प्रदेश में सामान्य धान 2040 रुपये प्रति क्विंटल एवं ग्रेड-ए धान 2060 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा गया है।
धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उत्तम किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को हरियाणा, दिल्ली जम्मू- कश्मीर, पंजाब और उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए विकसित किया है। 

मानसून की दस्तक के साथ ही धान की खेती चालू हो गई है। समस्त राज्यों में किसान भिन्न भिन्न किस्म के धान का उत्पादन कर रहे हैं। कोई मंसूरी धान की खेती कर रहा है, तो कोई अनामिका धान की खेती कर रहा है। 

परंतु, बासमती की बात ही कुछ ओर है। अगर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसान बासमती की खेती करना चाहते हैं, तो आज हम उनको कुछ ऐसी प्रमुख किस्मों के विषय में जानकारी प्रदान करेंगे, जिससे उनको अच्छी खासी पैदावार अर्जित होगी। 

विशेष बात यह है, कि इन प्रजातियों को कृषि वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न राज्यों के मौसम को ध्यान में रखते हुए इजात किया है।

पूसा सुगंध- 5:

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उम्दा किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को जम्मू- कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, यूपी और हरियाणा की जलवायु को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। 

यदि इन राज्यों के किसान पूसा सुगंध- 5 की खेती करते हैं, तो उनको बेहतरीन उत्पादन मिलेगा। पूसा सुगंध- 5 की रोपाई करने के 125 दिन पश्चात इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। इसकी खेती करने पर एक हेक्टेयर में 60-70 क्विंटल तक पैदावार होगी। 

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पूसा बासमती- 1121:

पूसा बासमती- 1121 को कृषि वैज्ञानिकों ने सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया है। इसकी फसल 145 दिन के अंतर्गत तैयार हो जाती है। 

पूसा बासमती- 1121 की उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1121 धान की एक अगेती किस्म है।

पूसा सुगंध- 3:

पूसा सुगंध- 3 को सुगंध और लंबे चावल के दाने के लिए जाना जाता है। यह खाने में बेहद ही स्वादिष्ट लगता है। यदि हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली के सिंचित क्षेत्रों के किसान इसकी खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल पैदावार अर्जित कर सकेंगे। इसकी फसल 125 दिन के अंतर्गत पक कर तैयार हो जाती है। 

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पूसा बासमती- 6:

पूसा बासमती- 6 की सिंचित इलाकों में रोपाई करने पर अधिक उत्पादन अर्जित होगा। यह एक बौनी प्रजाति का बासमती धान होता है। इसके दाने काफी ज्यादा सुगंधित होते हैं। पूसा बासमती- 6 की उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल होती है।

पूसा बासमती- 1:

पूसा बासमती- 1 धान की एक ऐसी किस्म है, जिसका उत्पादन किसी भी प्रकार के सिंचित क्षेत्रों में किया जा सकता है। इसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा पाई जाती है। इसमें झुलसा रोग की संभावना ना के समान है। 

विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1 की फसल 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मतलब कि 135 दिन के पश्चात किसान इसकी कटाई कर सकते हैं। 

यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में पूसा बासमती- 1 की खेती करते हैं, तो लगभग 50-55 क्विटल तक उत्पादन मिल सकता है।

चावल के रकबे में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी तो वहीं तिलहन के रकबे में आई गिरावट

चावल के रकबे में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी तो वहीं तिलहन के रकबे में आई गिरावट

वर्तमान खरीफ सीजन में 21 जुलाई तक धान की बुवाई का रकबा तीन प्रतिशत बढ़कर 180.2 लाख हेक्टेयर तक पहुँच चुका है। लेकिन, दलहन का क्षेत्रफल 10 प्रतिशत गिर के 85.85 लाख हेक्टेयर रह गया है। भारत में चावल को लेकर बड़ी खबर आई है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान खरीफ सीजन में विगत वर्ष की समान अवधि में 3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। विशेष बात यह है, कि हाल ही में केंद्र सरकार ने नॉन—बासमती चावल के निर्यात पर बैन लगा दिया है। इस वजह से ग्लोबल लेवल पर चावल के भाव में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। अमेरिका की दुकानों के बाहर चावल लेने के लिए भीड़ लंबी कतारों में लग गई हैं। वहीं दूसरी तरफ दलहन को लेकर थोड़ी हताशा भरी खबर देखने को मिली है। दलहन का क्षेत्रफल पिछले साल की समान अवधि में 10 प्रतिशत रकबा कम हुआ है। जिसका सीधा प्रभाव उत्पादन पर देखने को मिल सकता है और दालों की कीमतों में वृद्धि देखने को मिल सकती है।

चावल का क्षेत्रफल बढ़ा तो तिलहन के क्षेत्रफल में आई गिरावट

खरीफ सीजन में 25 जुलाई तक धान की रोपाई का क्षेत्रफल तीन प्रतिशत बढ़कर 180.2 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गया है। लेकिन, दलहन का क्षेत्रफल 10 प्रतिशत घटकर 85.85 लाख हेक्टेयर रह गया है। कृषि मंत्रालय के सोमवार को जारी आंकड़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई है। बीते वर्ष इसी अवधि में धान का क्षेत्रफल 175.47 लाख हेक्टेयर और दलहन का क्षेत्रफल 95.22 लाख हेक्टेयर था। धान खरीफ सीजन की मुख्य फसल है, जिसकी बुवाई सामान्य तौर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के साथ चालू होती है। भारत के कुल चावल उत्पादन का तकरीबन 80 प्रतिशत खरीफ सत्र से आता है। आंकड़ों के मुताबिक, श्री अन्न यानी मोटे अनाज का रकबा 25 जुलाई तक बढ़कर 134.91 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल इसी अवधि में 128.75 लाख हेक्टेयर था। ये भी पढ़े: धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

तिल एवं मूंगफली की फसल की स्थिति

नॉन फूड कैटेगिरी में तिलहन का क्षेत्रफल बढ़कर 160.41 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो विगत वर्ष की इसी अवधि में 155.29 लाख हेक्टेयर था। मूंगफली का रकबा 34.56 लाख हेक्टेयर से थोड़ा बढ़कर 34.94 लाख हेक्टेयर हो गया है। साथ ही, सोयाबीन का क्षेत्रफल 111.31 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 114.48 लाख हेक्टेयर हो गया है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कपास का क्षेत्रफल 109.99 लाख हेक्टेयर से ना के बराबर गिरावट के साथ 109.69 लाख हेक्टेयर रह गया है। गन्ने का क्षेत्रफल 53.34 लाख हेक्टेयर की तुलना में 56 लाख हेक्टेयर रहा है।

खरीफ के समकुल क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी

समस्त प्रमुख खरीफ फसलों का कुल क्षेत्रफल अब तक बढ़कर 733.42 लाख हेक्टेयर हो चुका है, जो कि विगत वर्ष की इसी अवधि में 724.99 लाख हेक्टेयर था। दक्षिण-पश्चिम मानसून ने भारत में केरल के तट पर आठ जून को दस्तक दी थी। लेकिन इसकी सामान्य तारीख एक जून है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने पहले कहा था, कि अल नीनो के हालात बनने के बावजूद दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान भारत में सामान्य बारिश होने की आशा है।
किसान भाई परमल किस्म की धान की ई-खरीद ना होने से निराश

किसान भाई परमल किस्म की धान की ई-खरीद ना होने से निराश

अनाज मंडियों में अन्य दूसरे प्रदेशों से परमल धान की किस्मों के आने की संभावना के कारण प्रशासन ने ई-खरीद पोर्टल के जरिए से परमल किस्मों की खरीद रोक दी है। इस वजह से जिन कृषकों का परमल धान अब भी खेतों में पड़ा हुआ है, वे काफी परेशान हैं। हरियाणा में करनाल जनपद की अनाज मंडियों में अन्य राज्यों से परमल धान की किस्मों के आने के अंदेशे की वजह से प्रशासन ने ई-खरीद पोर्टल के जरिए से परमल किस्मों की खरीद को रोक दिया है। इस कारण से जिन किसानों का परमल धान आज भी खेतों में पड़ा हुआ है, वे काफी कठिनाई में फंस गए हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक, किसानों ने आरोप लगाया है, कि प्रशासन का यह कदम उनको निजी खरीदारों को औने-पौने भावों पर अपनी फसल विक्रय के लिए विवश कर सकता है। साथ ही, अधिकारियों ने यह दावा किया है, कि जनपद में कटाई का कार्य पूर्ण हो चुका है। साथ ही, उनको यह आशंका है, कि जनपद की अनाज मंडियों में कुछ व्यापारी अन्य राज्यों से धान ला सकते हैं तथा एमएसपी पर विक्रय कर सकते हैं।साथ ही, किसानों की मांग है, कि धान की फसल खेतों में पड़ी है अथवा नहीं, इसकी जांच कर अधिकारी धान की खरीद शुरू करें। रिपोर्ट के मुताबिक, परमल धान (एमएसपी 2,203 रुपये प्रति क्विंटल) का पंजीकरण फिलहाल ई-खरीद की जगह ई-एनएएम पोर्टल पर किया जा रहा है। सरकारी एजेंसियों की जगह, उनका उत्पादन फिलहाल निजी खरीदारों द्वारा खरीदा जा रहा है।


 

परमल धान की 97 लाख क्विंटल आवक हुई है

करनाल जनपद में अब तक लगभग 97 लाख क्विंटल परमल धान की आवक हो चुकी है। वहीं, विगत वर्ष आवक लगभग 107 लाख क्विंटल थी। जरीफाबाद के पुनीत गोयल ने बताया कि, “बाढ़ के बाद, मैंने नौ एकड़ में परमल किस्म के धान की खेती की थी। वर्तमान में फसल कटाई के दौरान मुझे पता चला कि खरीद बंद कर दी गयी है। सरकार को धरातल पर आकर देखना चाहिए और जो धान अभी भी खेतों में है, उसे खरीदना चाहिए।” एक अन्य किसान निरवेर सिंह ने कहा कि आठ एकड़ में परमल किस्म के धान की कटाई अभी बाकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि निजी खरीदार एमएसपी से नीचे उत्पादन को खरीदेंगे।

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धान खरीद कम एमएसपी में होगी

खबर के अनुसार, एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि व्यापारियों को राज्य के बाहर से धान लाने से रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। " हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी धान एमएसपी से नीचे न खरीदा जाए। इस संबंध में अधिकारियों को निर्देश दे दिये गये हैं.” उन्होंने कहा, ''जिले भर के खेतों में शायद ही परमल की कोई फसल खड़ी है।" गौरतलब है, कि परमल धान की बिक्री करने के लिए वर्तमान में किसानों को पंजीकरण फिलहाल ई-खरीद पोर्टल की जगह ई-नाम पोर्टल पर करना पड़ रहा है। साथ ही, सरकारी एजेंसियों के बजाय, उपज अब निजी खरीदारों द्वारा खरीदी जा रही है।